Thursday, August 25, 2016

मेरी अधूरी कहानी (भाग 4)

मेरी अधूरी कहानी
(Part – IV)

IIT वाली नौकरी में, मुझे देश के कई राज्यो के स्कूलों और कॉलेजों में जाना पड़ता , जिसकी वजह से मैं अपनी अधूरी पढ़ाई  पूरी नहीं कर पा रहा था।  इस चलते मैंने रोबोटिक्स ट्रेनर की नौकरी छोड़ दी। फिर से मैंने PHYSICS के प्रति अपने प्यार को जागते हुए पाया और M.Sc. करने की सोची, परंतु घर की माली हालत देखकर मुझे एक स्थायी नौकरी की जरुरत थी। पिताजी ने मुझे सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए कहा और समय की भी यही मांग थी।  तो बस क्या था , पकड़ लिया साथ Google का और निकल पड़े तैयारी को।  पहली बार बैंक क्लर्क की परीक्षा दी और किस्मत ने पंजाब नेशनल बैंक के परिवार में मुझे सम्मिलित कर दिया। आप लोगो ने सुना ही होगा कि , " नौकरी भी एक बीवी की तरह होती है - जिसके साथ जीवन का काफी हिस्सा साथ बिताना होता है।  इस तरह मेरी भी शादी हो गयी है बैंकिंग से , बैंकिंग इंडस्ट्री से और पहला प्रेम रह गया PHYSICS से ।

PHYSICS से प्रेम को ज़िंदा और ताजा रखने के लिए मैं बैंक में लगने से पहले , कोचिंग में पढ़ाया करता था। वहाँ मैं इण्टर (बारहवीं) के छात्रों को पढ़ाता था।  छात्रों से पहली मुलाकात में ही मैं उन्हें कह देता PHYSICS मेरी सखी (गर्लफ्रेंड ) है।  एक बैच के एक शरारती छात्र ने मेरा मजाक उड़ाने के लिए पुछा ," सर, बात प्यार से शादी तक पहुँचेगी कभी ? या कुंवारे रहोगे ? गर्लफ्रेंड तक तो ठीक है , पर शादी कैसे पॉसिबल है और बच्चे?"और बाकी की क्लास भी ठहाके लगाने लगी।
कुछ पल के लिए मैं सहम सा गया एक बच्चे का आसान सा सवाल सुनकर ।  उसी पल जब मैंने PHYSICS के प्रति अपने प्रेम को महसूस किया , जवाब निकला ," PHYSICS से मेरी शादी तब होगी जब मैं Ph.D. कर लूंगा और मेरी खोज ( रीसर्च पेपर ) ही हमारे बच्चे होंगे जो मेरे और PHYSICS के नाम से जाने जाएंगे। जैसे न्यूटन्स लॉ , coloumb's  law  .. वैसे ही shailesh's  law

प्रिय PHYSICS, जैसा मैंने पहले भी कहा, तुम मुझमे समा गयी हो, मेरी सोच में भी तुम्हारी बराबर की हिस्सेदारी होती है। तुमसे लिया हुआ ज्ञान मुझे यहाँ भी काम आता है और कई बार तुम्हारी यादें आँखें नम कर जाती हैं , और जो कभी  बहकर जुबान पर आ जाएँ तो दिमाग में salty  water  की घनत्व (density ) की गणना करने लग जाता है। ये तुम्हारे लिए मेरा पागलपन न तो ख़त्म होगा न ही काम होगा।  ये प्रेम तो शराब की तरह है जितनी पुरानी होगी , नशा उतना ही गहरा होता जाता है ।

मेरी इस कहानी को लिखनी की प्रेरणा मेरे जैसे कई आशिक़ हैं जिनकी मोहब्बत पूरी न हो सकी, फर्क सिर्फ इतना है कि मैंने PHYSICS से की और आप लोगों ने किसी और विषय विशेष से।  मेरी इल्तेजा है मेरे पाठकों से कि इस कहानी को हो सके तो , एक बार फिर से PHYSICS की नजर से पढें और कहानी का पूरा आनंद लें।  इसमें मैंने  PHYSICS की कई शाखाओं का वर्णन भी किया है जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑप्टिक्स और मॉडर्न PHYSICS . यह मेरी एक छोटी सी कोशिश है मेरे प्रिय विषय के प्रति अपना प्रेम जताने की।

अंत में   (PHYSICS) प्रति मेरे प्रेम को व्यक्त करने के लिए आज के बहुचर्चित कवी श्री कुमार विश्वास जी की कुछ पंक्तियाँ पेश करना चाहूंगा -

कोई दीवाना कहता है , कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को, बस बादल समझता है।

मैं तुझसे दूर कैसा  हूँ , तूँ  मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है , या मेरा दिल समझता है।

मेरी अधूरी कहानी (भाग 3)

मेरी अधूरी कहानी
(Part – III)

अपने प्यार को सच्चा साबित करने के लिए मैंने खुद को खुद का ही सहारा दिया।  वो कहते हैं ना जब तक आप अपनी मदद खुद नहीं करेंगे , तब तक खुदा भी आपकी मदद नहीं करता। ----------------
मेरी मेहनत और लोगों का साथ , रंग लाया।  मैंने तुम्हारा इम्तेहान पास कर लिया और अपनी ही नजरो में अपना खोया हुआ आत्मसम्मान वापस पाया।  लेकिन अब तक मैं बाकी लोगो की तरह असमंजस में था कि तुम्हारे साथ ज़िन्दगी की शुरुआत कैसे की जाए ? नौकरी भी नहीं मिल रही थी , आखिर में सोचा पोस्ट ग्रेजुएशन कर लेते हैं , कुछ साल और,तुम्हारे साथ कॉलेज में वक़्त बिताने का मौका मिलेगा , शैतानियां कर पाउँगा , तुम्हारी सहेलियों को , बहनो को निहार पाउँगा वरना नौकरी पे लगने के बाद ये मौका कहाँ मिलेगा।  मैं यहाँ स्वीकार करता हूँ की तुम्हारा ४४० वोल्ट झटके वाला रूप कमाल का है। मुझे लगने लगा था कि तुम बस मोटे मोटे लेंस ही लगाती रहोगी , पर तुम्हारा sunglasses  वाला रूप क्या निखर के आता।  तुम्हारा मॉडर्न रूप इन सबपे भारी था। मैंने तुम्हारे साथ रहने के लिए फिर से SIES कॉलेज  में M.Sc.  के लिए आवेदन किया किन्तु मेरिट लिस्ट में नाम न आने की वजह से मुझे तुम्हारा साथ छोड़ने का फैसला लेना पड़ा। मेरी भी क्या किस्मत है , मैंने साल बर्बाद न होने की डर से PGDIT ( पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ) में  दाखला लिया। तुमसे सीखी हुई कई बातें मुझे PGDIT में फिर से पढ़ने को मिली जिन्हें समझने में कोई परेशानी नहीं होती ।  तुम्हारे साथ रहकर सोचने और समझने का जो मेरा तरीका बन गया था , PGDIT में मुझे बहुत काम आया। इस तरह भले ही मैं तुमसे दूर हुआ था , लेकिन तुम मेरे अंतःमन में, विचारों में ,इस कदर समा गयी हो कि लगभग हर बात मैं तुम्हारे नजरिये से देखता। प्रैक्टिकल लैब में तुम्हारे साथ रहकर 'धैर्य' क्या होता है इसका एहसास भी तुमने बखूबी कराया। तुम्हारा नजरिया PGDIT में ही नहीं मेरी निजी ज़िन्दगी में भी सकारात्मक असर बनाये हुए था।   PGDIT के मेरे ग्रुप ने तुम्हारे प्रति मेरी निष्ठां की काफी तारीफ़ की।
PGDIT के रिजल्ट के बाद मेरे घरेलू हालात  ऐसे थे कि मुझे जल्द से जल्द नौकरी पानी थी और घर के आर्थिक मामलो में अपना योगदान देना था। इन्टरनेट पे naukri.com  और timesjobs.com  के जरिये कई जगह आवेदन करने करने के बाद मुझे एक साथ दो  नौकरियों में से एक का चयन करना पड़ा। अपने प्यार से वापस जुड़ने के लिए, मैंने सॉफ्टवेर टेस्टिंग की नौकरी को छोड़ने का और IIT-Bomay - पवई स्थित THINKLABS Technosolutions Pvt. Ltd. में आधी तनख्वाह में  बतौर रोबोटिक्स ट्रेनर की नौकरी करने का फैसला लिया। मैं काफी खुश था कि जिस ' PHYSICS ' को मोहब्बत मानते आया था , बचपन से जिसके साथ होने के ख्वाब देखते आया था, उसके उन्नत  प्रौद्योगिकी (Advanced Technology ) पर मुझे काम करने का अवसर प्राप्त हो रहा है। वहाँ IIT के माहौल में मुझे अपनी खोज- रूपी मोहब्बत को आकार देने का अवसर प्राप्त हुआ ।  ज़िन्दगी काफी बढ़िया गुजर रही थी अपने प्यार के साथ , और मनोबल दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। वहाँ काम करते हुए मैंने ' PHYSICS ' के प्रति अपने प्रेम के चलते काफी वाह वाह बटोरी और हमारे प्यार की  नाव (मोटर बोट मॉडल ) वहीँ छोड़ आया। 

मेरी अधूरी कहानी (भाग 2)

मेरी अधूरी कहानी
(Part – II)

तुमसे दूर होने की वजह मेरी तुम्हारे प्रति निष्ठां की कमी थी ! मन ही मन मैं तुम्हे चाहता था पर इस बात का एहसास पिताजी को जता पाना मेरे लिए काफी मुश्किल  था ! कई बार मैंने तुमसे जुड़ने की बात पिताजी से कहने की कोशिश की परंतु उनकी आँखों में मुझे डॉक्टर बनाने के सपने के आगे अपने दिल की आवाज को दबा देता ! इस मामले को लेकर जब मैं क्लासमेट्स से बात करता , पहले तो वे मेरा मजाक उड़ाते , फिर मुझे  मजाक बना देते ! आज भी याद करता हूँ तुम सबको "बाबू , काँचा , मिस्टर बजाज , नीरज , राकेश " और हमारे बीच बहुचर्चित आमिर खान सर को ! दोस्तों , तुम्हारे अलावा जब कभी अपने सीनियर्स को देखा  या उनसे  इस मामले पूछा तो यही पाया कि हर कोई  खुशनसीब नहीं होता कि जिससे प्यार हुआ उसी से शादी हो ! अपने अब तक के सफर को देखकर प्रेम की कुछ बारीकियाँ, ज्यादा  गहराई में समझ आयी ! जैसे कि 'प्यार होना' और 'प्यार करना' इन दो बातों का मतलब अलग अलग मतलब समझा मुझे। फ़िलहाल, जूनियर  कॉलेज और मेडिकल कॉमन एंट्रेन्स टेस्ट में काबिल अंक ना आने पर मुझे तुम्हारे लिए अपने मन में सिर्फ नाम वाला प्यार नजर आने लगा। तुम हमेशा से एक परी की तरह रही और मैं एक तुच्छ प्राणी। 

करियर के चयन एवं पारिवारिक परिस्थितियों के भंवर के चलते मैंने एक साल बाद डिग्री कॉलेज में दाखला लिया ! वहाँ भी नहीं सोचा था कि तुमसे मुलाकात होगी , पर कहते हैं ना नसीब में लिखे को कौन टाल सकता है। B.Sc. के  प्रथम व द्वितीय वर्ष तुम्हारे व तुम्हारी सखियो/बहनों के साथ बिताया पर मुझे उनमें रूचि नहीं थी और तृतीय वर्ष में मुझे तुम्हें ही चुनना पड़ा।  लड़कियों को समझना तो भगवान के बस की नहीं , तो हम क्या चीज हैं। होने को तुम खुली किताब हो पर हर एक मसले को समझने के लिए , उसका इतिहास , भूगोल पढ़ना पड़ता है । कुछ भी कहो , स्कूल में मुझे जितना डर लगता था तुम्हें छूने में , तृतीय वर्ष तक आकर तुमसे जुड़ी चीजों को छूने का मजा आने लगा ! लैब में तुम्हारे साथ वक़्त बीताना , अँधेरे में किये जानेवाले एक्सपेरिमेंट में तो कुछ ज्यादा ही शरारत सूझती। मैं आज ये भी बताना चाहूंगा कि तुम्हारे प्रति मेरे प्रेम में अश्लीलता की कोई गुंजाईश ही नहीं थी। हर लम्हा बस तुम्हारा एहसास रहा और तुम्हारी कहानियाँ कागज के कुछ पन्नो पे पढ़ता , निहारता । तुम्हारा न तो कोई ओर है न छोर , अनंत हो ! जितना तुम्हे समझने की कोशिश की उतनी गहराई में डूबते चले गया।

आखिर कॉलेज ख़त्म होना ही था एक दिन , और आखरी समय आ ही गया ! साल के शुरुवात में अपना लगभग पूरा समय NCC , स्पोर्ट्स एवं अन्य गतिविधियों को देने की सजा मिलनी ही थी , तुम्हे नजरअंदाज जो किया था।मेरी नजरअंदाजी का खामियाजा मुझे १ साल गवाँकर भुगतना पड़ा। प्रोफेसर्स के कई बार आगाह करने पर भी मैं खुद के चर्या में उचित बदलाव न ला सका, उसका अफ़सोस मुझे आज भी है।  एक गुरु भले ही कठोर होता है लेकिन दिल से यही चाहता है कि उसके छात्र एक उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर हों, और उस सफर में उस गुरु का सकारात्मक योगदान हो।  प्रोफेसर्स भी तुम्हारे और मेरे बारे में जानते थे और कई बार हमारी कमजोर होती कड़ी  को मजबूत करने को कहा  बहुत बहुत शुक्रिया प्रतिभा पई मैम , वेंकटरामन सर , HOD वेंकटकृष्णन सर , देशपांडे सर , किरण सर। प्रतिभा पई को मैं अपना लव गुरु कहना चाहूंगा। जिस वक़्त मैं खुद को प्यार में हारा हुआ मान रहा था उस वक़्त इसी गुरुमाँ ने मुझे मेरे भीतर जीवित , तुम्हारे प्रति प्रेम ज्योत को सूर्य बनाने की प्रेरणा दी ! हमारी डिग्री कॉलेज में प्रवेश  की मुलाकात और यूनिवर्सिटी परीक्षा में हुई मुलाकात को ग़ालिब के एक ही शेर से बयान करना चाहूँगा ...

"नकाबे रुख उलटने तक मुझको होश था लेकिन , भरी महफ़िल में इसके बाद क्या गुजरी खुदा जाने। "  

Wednesday, August 24, 2016

मेरी अधूरी कहानी (भाग १)

मेरी अधूरी कहानी
(Part – I)

क्या कश्मकश है !! जब तुम्हारे पास तुम्हारी गलियो में था , मोहल्ले में था , हर वक़्त , हर लम्हा तुम्हारा ख्याल होता थाख़ुशी से कम पर गम से ज्यादा ! तब ये नहीं जानता था, मैं तुमसे इतना दूर चला जाऊंगा और हैरानी ये की दूर होकर कुछ ज्यादा ही पास हो गयी हो ! मुझे कोई हिचकिचाहट नहीं है ये कहने में कि   I Love You .
हमारी मुलाकात भी क्या अजीब थी, सालों school में साथ रहे, लेकिन तुम्हारा नाम तक नहीं जानता था ! वहां बस तुम्हारे खानदान उससे जुड़े बड़ी बड़ी हस्तियों के नाम और उनकी उपलब्धियों के बारे में सुनने को मिलता ! उनकी  उपलब्धियों को सुनकर तीव्र इच्छा होती कि काश मैं भी उस वंश का हिस्सा बन सकूँ ! जैसे जैसे बड़े होते गए तुम्हारे सौंदर्य में निखार आता गया , और मैं बेवजह तुम्हारी ओर खींचता चला गया ! तुमसे जुडी बातों को सुनने में , एक अलग ही आनंद आता ! कई बार तो ऐसे वर्णन मिलते तुम्हारे कारनामों को लेकर, जो मेरी समझ से परे होता था , फिर भी तुम्हे परी मानकर , उन बातों की सुखानुभूति करता !

मजेवाले दिन थे वो, तुम्हारे लिए मेरी दीवानगी को देखकर जूनियर कॉलेज में ही मेरा नामकरण कर दिया गया था , और जब जब मुझे उस उपनाम से बुलाया जाता मेरी छाती चौड़ी हो जाती , आँखों में एक चमक सी जाती ! जूनियर कॉलेज के अंतिम सफर में मैंने तुम्हे छोड़कर किसी और राह पे जाने का फैसला लिया परंतु तुम्हारा दबदबा इतना है कि तुम वहाँ भी गयी , और मैं चाहकर भी तुमसे पीछा छुड़ा सका ! इन सबके पीछे तुम्हारे वंश का बड़ा हाथ था! तुम्हारे परिवार के प्रति मेरी बस नाम की रूचि को देखकर तुम्हारी वंश प्रणाली ने मुझे , मेरे द्वारा  तय किये हुए सफर मंजिल से कोसों दूर कर दिया !