मेरी अधूरी कहानी
(Part – IV)
IIT वाली नौकरी में, मुझे देश के कई राज्यो के स्कूलों और कॉलेजों में जाना पड़ता , जिसकी वजह से मैं अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रहा था। इस चलते मैंने रोबोटिक्स ट्रेनर की नौकरी छोड़ दी। फिर से मैंने PHYSICS के प्रति अपने प्यार को जागते हुए पाया और M.Sc. करने की सोची, परंतु घर की माली हालत देखकर मुझे एक स्थायी नौकरी की जरुरत थी। पिताजी ने मुझे सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए कहा और समय की भी यही मांग थी। तो बस क्या था , पकड़ लिया साथ Google का और निकल पड़े तैयारी को। पहली बार बैंक क्लर्क की परीक्षा दी और किस्मत ने पंजाब नेशनल बैंक के परिवार में मुझे सम्मिलित कर दिया। आप लोगो ने सुना ही होगा कि , " नौकरी भी एक बीवी की तरह होती है - जिसके साथ जीवन का काफी हिस्सा साथ बिताना होता है। इस तरह मेरी भी शादी हो गयी है बैंकिंग से , बैंकिंग इंडस्ट्री से और पहला प्रेम रह गया PHYSICS से ।
PHYSICS से प्रेम को ज़िंदा और ताजा रखने के लिए मैं बैंक में लगने से पहले , कोचिंग में पढ़ाया करता था। वहाँ मैं इण्टर (बारहवीं) के छात्रों को पढ़ाता था। छात्रों से पहली मुलाकात में ही मैं उन्हें कह देता PHYSICS मेरी सखी (गर्लफ्रेंड ) है। एक बैच के एक शरारती छात्र ने मेरा मजाक उड़ाने के लिए पुछा ," सर, बात प्यार से शादी तक पहुँचेगी कभी ? या कुंवारे रहोगे ? गर्लफ्रेंड तक तो ठीक है , पर शादी कैसे पॉसिबल है और बच्चे?"और बाकी की क्लास भी ठहाके लगाने लगी।
कुछ पल के लिए मैं सहम सा गया एक बच्चे का आसान सा सवाल सुनकर । उसी पल जब मैंने PHYSICS के प्रति अपने प्रेम को महसूस किया , जवाब निकला ," PHYSICS से मेरी शादी तब होगी जब मैं Ph.D. कर लूंगा और मेरी खोज ( रीसर्च पेपर ) ही हमारे बच्चे होंगे जो मेरे और PHYSICS के नाम से जाने जाएंगे। जैसे न्यूटन्स लॉ , coloumb's law .. वैसे ही shailesh's law
प्रिय PHYSICS, जैसा मैंने पहले भी कहा, तुम मुझमे समा गयी हो, मेरी सोच में भी तुम्हारी बराबर की हिस्सेदारी होती है। तुमसे लिया हुआ ज्ञान मुझे यहाँ भी काम आता है और कई बार तुम्हारी यादें आँखें नम कर जाती हैं , और जो कभी बहकर जुबान पर आ जाएँ तो दिमाग में salty water की घनत्व (density ) की गणना करने लग जाता है। ये तुम्हारे लिए मेरा पागलपन न तो ख़त्म होगा न ही काम होगा। ये प्रेम तो शराब की तरह है जितनी पुरानी होगी , नशा उतना ही गहरा होता जाता है ।
मेरी इस कहानी को लिखनी की प्रेरणा मेरे जैसे कई आशिक़ हैं जिनकी मोहब्बत पूरी न हो सकी, फर्क सिर्फ इतना है कि मैंने PHYSICS से की और आप लोगों ने किसी और विषय विशेष से। मेरी इल्तेजा है मेरे पाठकों से कि इस कहानी को हो सके तो , एक बार फिर से PHYSICS की नजर से पढें और कहानी का पूरा आनंद लें। इसमें मैंने PHYSICS की कई शाखाओं का वर्णन भी किया है जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑप्टिक्स और मॉडर्न PHYSICS . यह मेरी एक छोटी सी कोशिश है मेरे प्रिय विषय के प्रति अपना प्रेम जताने की।
अंत में (PHYSICS) प्रति मेरे प्रेम को व्यक्त करने के लिए आज के बहुचर्चित कवी श्री कुमार विश्वास जी की कुछ पंक्तियाँ पेश करना चाहूंगा -
कोई दीवाना कहता है , कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को, बस बादल समझता है।
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तूँ मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है , या मेरा दिल समझता है।